Thursday 8 December 2011

हम तो हसरतों के...

हम तो हसरतों के,
      किताबो में मिलेंगे.
दिल  से बुलाओगे,
    तो ख्वाबो में मिलेंगे.
साँस बनके रहता हूँ,
    दिल के धडकनों में,
हम तो महफ़िलों के,
    तरानों में मिलेंगे.
बहारों के चमन में,
     कांटे भी मिलेंगे,
महक बनके हम तो,
   बागों में मिलेंगे.
साँस भी जो थम गई,
   कोई है गम नहीं,
हम तो सगरो के,
     किनारों पे  मिलेंगे.
वक्त तो ठहरा नहीं,
    करता है ये साहिल,
याँद बनके हम तो,
    फ़जाओं में मिलेंगे.


फलक के परिंदों को...

फ़लक के परिंदों को,
   उड़ना सिखा दिया.
दिल दे के  इंशा को ,
     तड़पना सिखा दिया.
जहाँ को उल्फ़त का,
     तोहफा क्या दे दिया,
साहिल को भी काँटों ,
    की डगर चलना सिखा दिया.
पतंगो को पंख दिया,
    उड़ने के वास्ते,
जल उठी शम्मा तड़प-
   के मरना सिखा दिया.
हाथ उठाया था,
    इबादद के वास्ते,
बंद  आँखों में भी
    तुने उल्फ़त दिखा दिया.
सागर में उठती लहरे,
    साहिल से मिल सके.
लहरों को भी तुने,
     उछलना सिखा दिया.
                      -साहिल सुमन

यांदो में...

यांदो में आ रही है,
        ख्वाबों में आ रही है.
जाने छुपी कहाँ  ओ,
        मुझको सता रही है.
कभी पायल बजा रही है,
        कभी चूड़ी बजा रही है,
जाने कहाँ छुपी ओ,
        कुछ गुनगुना रही है.
बागो में किसकी बोली,
       कोयल सी आ रही है,
देखू जरा मै उसको,
        क्यूँ नज़ारे चुरा रही है.
कभी पलकें झुका रही है,
     कभी पल्लू मै छुप रही है,
जाने छुपी कहाँ ओ ,
        मुस्करा रही है.

पैगाम

पैगाम लिख रहा हूँ,
             सलाम लिख रहा हूँ.
तेरी ही यांदो का ,
             कलम लिख रहा हूँ.
 कुदरत का था करिश्मा,
              या किस्मत की बात थी,
हम मिले थे जिस दिन,
               ओ शाम लिख रहा हूँ.
आँखों से जो पिलाये,
               मय के तूने प्याले,
मधुशाले में बैठ के,
              ओ जाम लिख रहा हूँ.
पत्थर पे जो लिखा था,
              हमने है संगेदिल,
मै यांद करके तेरा,
              ओ नाम लिख रहा हूँ.
अफसार ने भिगोया,
               संगेमरमर सा बदन,
मै उस दिन की मदहोश,
               भरी शाम लिख रहा हूँ.

Tuesday 6 December 2011

फलक के परिन्दे

फ़लक के परिंदे मंजिल को ढूढ़ते  है,
           सागर में उठती लहरे"साहिल"को ढूढती है।
सागर से   है वफाई या साहिल से मोहब्बत, 
           चूम के साहिल को सागर में लौटती है।
इनकी उछलती हुई बुलंदी तो देखिये,
          हवाओ को भी अपने आग़ोश में रखती है।


Friday 7 October 2011

अनमोल हैं मोती के दाने...

अर्ज है-
तेरी नीली आँखों में,दरिया है या है समंदर,
                  भीगी पलकें बता रही,कुछ राज है इनके अन्दर.


अनमोल है मोती के दाने,
      पलकों पर आंशू मत लाना.
दर्द तो तो हर अफसाने में,
         अच्छा तो नहीं है दिखलाना.
सारा जहां ये कहता है,
         कोयले से हीरा निकलता है,
आशा के तुम दीपक हो,
         दुनिया में उजाला फैलाना.
मंजिल के सफ़र पैरों में कभी,
              ठोकर भी जो लग जाये 
डरना नहीं ये याद रहे,
               बस आगा बदते जाना.
तुम सक्षम हो सब करलोगे,
               फिर काँटों से क्या घबराना.  
मै साहिल पत्थर ही हूँ, 
              कंकर- पत्थर क्या दे सकता,
झुक जाये कदम में ये दुनिया,
              बस दिल की दुआ लेते जाना. 

तू मेरी जोहरा-जबी

तू मेरी जोहरा-जबी,
       बनके दिखा इस बज्म में.
आ मेरे अधरों पे रख दे,
            लार्जिसे-लव रक्स में.
आ दिखा दे इस जहाँ को,
           हम अपनी जैलानिया.
फिर डुबो दें इस जहाँ को,
            हर्ष के तूफान में.

Friday 23 September 2011

दर्दे दिल की भी कोई दवा दीजिये,
          सुकूँ मिल सके ये दुआ कीजिये.
दिल धडकता है सिने में जिसके लिए, 
          ओ सताना ही चाहे तो क्या कीजिये.

Friday 26 August 2011

आखिर जिन्दगी है

आखिर जिन्दगी है,
                    जीना पड़ता है .
ख़ुशी हो या गम,
                    आखिर जीना पड़ता है.
जब कोई अपना,
                    जख्म देता है ,
लहू को आँशु बना,
                    पीना पड़ता है.
हर मंजिल से पहले,
             इम्तिहान से गुरना पड़ता है.
ऐसे माहौल में फूलों पे नहीं.
               काँटों पे चलाना पड़ता है.
आखिर जिन्दगी है,
                        जीना पड़ता है.

अफसोश

बूँद की तलास थी,
            सागर थमा दिया.
 अफसोश  उसने दिल,
             पे खंजर चला दिया.
निकली लहू की धारा,
             जब प्यास बुझाने को,
कमबख्त मुड़के देखा,
              प्यासा ही चल दिया.

Sunday 31 July 2011

कौन हिन्दू,कौन मुश्लिम .....

           कौन हिन्दू,कौन मुश्लिम .....
 
कौन हिन्दू-कौन मुश्लिम;कौन सिक्ख-इसाई,
             दर्द तो माँ को होता ही है, लड़ते है सब भाई.
मिले फुर्सत सियासत से तो सुन लेना ये आवाजे,
            तड़पती है मगर सुन ले आह भरती नहीं माई.
सियासत बजो ने मिल कर बना डाले है क्या मजहब,
            खुद तो शासन ही करते है,लड़ते मरते है हम-भाई.
उठा लो आग हाथो में जला दो उस सियासत को
            हमें मिलाने नहीं देता मिटा दो ऐसे मजहब को.
लहू तो एक जैसा है तो क्यूँ मजहब बने खाई,
            मिला लो हाथ आपस में मिटा दो आज ऐ खाई.

Sunday 24 July 2011

वतन के लिए ...


सर पे बंधा तिरंगा कफ़न के लिए,
       दिल क्या जन भी मै  दे दूं वतन के लिए.
जिसने अपने लहू से है पला मुझे,
       उस जमी पे खड़े है नमन के लिए.
धड़कने भी कभी जो यू थमने लगे,
        साँस भी जोड़ दे इस चमन के लिए
साहिल सुमन है दुआ मांगता,
        हिंद धरती मिले हर जनम के लिए.

Tuesday 28 June 2011

तस्वीरें..

तस्वीरें कितनी बना दी हमने ,
                      अपने ही किताबो में .
वो तस्बीर बनू कैसे ,
                      आती है जो ख्वाबो में.
बना तो मई वह भी सकता हूँ, 
                        पर डरता है मेरा मन.
कंही खो न जाये वो मेरे ,
                       ही किताबो में.
तस्वीर की बात चले ,
                     तो बन जाती है आँखों में,
फिर भी जाने दूदुं  क्यूँ ,
                    उसको मै किताबो में.
 

Saturday 25 June 2011

क्या सुनाये....

क्या सुनाये कुछ सुनाया नहीं जाता,
        अब तो दिल भी किसी से लगाया नहीं जाता . 
इस सीने में तो सिर्फ दर्द ही दर्द है ,
       सुना तो दूं पर अपनों को रुलाया नहीं जाता.
खामोश आँखों में अश्क आने नहीं देंगे ,
       कहते तो है सभी पर निभाया नहीं जाता.
ये सुन मुसाफिर मंजिल को जाने वाले ,
     साहिल को समंदर डुबोया नहीं जाता.

Wednesday 22 June 2011

रब ने मुझसे कहा

रब ने मुझसे कहा कुछ दुआ मांग ले ,
                  मैंने रब से कहा तू मुझे जान ले। 
हर दुआ मांगने से है मिलती कहाँ,
                जो देना ही चाहे तो खुद जान ले। 
तू तो सब के दिलों की है जाने रजा,
                फिर क्योँ पूछता  है मेरी रजा.
सारी  दुनिया है तेरी रचायी  हुई, 
                किसके लिए यहाँ क्या मांग ले। 
बिन मांगे  बहुत कुछ  दिया  है मुझे ,
               ये तो अच्छा नहीं हम तुझे मांग ले। 
                              -साहिल सुमन 
.

Thursday 16 June 2011

नामे दुनिया ने साहिल सुमन रख दिया...

दर्द का जब से कोई चुभन रख लिया,
      अपनी खुशियों को हमने दफ़न कर दिया। 
अपनी तुर्बत पर सब की हंसी देखकर ,
      नामे दुनिया ने 'साहिल सुमन' रख दिया।
मै कहीं भी खिला खिल के हँसता रहा ,
      टूटते डाल से मै सिसकने लगा.
कोई भगवन के सर पे चड़ने लगा,
       कोई खुद को मुझी से सजाने लगा.
दर्द देखा न मेरा किसी ने यंहां ,
       मै रो-रो के सबको हंसाने लगा.
बेबसी में भी सब कुछ सहन कर लिया ,
      नामे दुनिया ने 'साहिल सुमन' रख दिया.
कुछ कद्र दान है जो सभाले हुए ,
     आसियाने या बागो में पाले हुए,
वे भी डरते है काटा  चुभे न कहीं ,
     फिर भी मेरे लिए वे निराले हुए.
वेखुदी में भी सब  कुछ सहन कर लिया ,
     नामे दुनिया ने 'साहिल सुमन 'रख दिया.
                                     - साहिल  सुमन 
स्वागत करती मेरी नगमा,
         कशिश दिया है जिसका नाम,
 बंदन करती पाठक जन का
         साहिल सुमन है मेरा नाम.
कशिश हमारी स्वपन परी है,
         न की नसा करने की जाम,
न ये मद है न मदिरा है,
         फिर भी पिने की है जाम .

Sunday 12 June 2011

दिल के सुर्ख दीवारों पर ...

दिल के सुर्ख दीवारों पर चुप-चाप कलम जब चलती है,
                एसा लगता है धड़कन अब मासूक से बाते  करती है.
                                                     - साहिल सुमन

दिल की किताब...

दिल की खुली किताब तो अरमा मचल गए,
    पढ़ना जो चाहा अदब से पन्ने पलट गए।
कुछ अल्फ़ाज समझने की कोशिश अभी की थी,
    की धड़कने कहने लगी तुम कहाँ खोखो गये।
                    - साहिल सुमन       

हाइकु सावन श्रृंखला

१ -  फटी बिवाई       थी धरती व्याकुल       सावन आया । २ - नीलाअंबर      टपक रहा जल      मिट्टी महकी । ३ - हर्षित मन       अब महक रहा      भी...