Friday 17 November 2017

ओ बचपन



ओ बचपन का जमाना था,
     जो मुझको याद आता है।
कभी जो मैं यूं गिरता था,
      तो बापू थांम लेते थे।
मेरी नादानियों को भी,
    वो  अक्सर टाल देते थे।
वो  रातों को भी अक्सर,
       जागकर मुझको सुलाते थे।
उनकी थपकियाँ देकर,
       सुलाना,याद आता है।
खिलौना टूटने से भी मै,
         रोता  था बिलखता था।
तभी माँ सामने आकर,
               सीने से लगाती थी।
अभी मै जिद नही छोड़ा,
            कि आँचल में छुपाती थी।
ओ आँचल के तले अक्सर,
           मुझे अमृत पिलाती थी।
अनकी लोरियां गाकर,
          सुनाना याद आता है। ओ बचपन.............



Tuesday 14 November 2017

यांदों

यादों में "कशिश"है तो,
     धड़कन,एहसास दिलायेगी।
दिल से जिसे पुकारोगे,
      ये हवा उसे ले आयेगी।
चाहत जिसकी रखते हो दिल में,
       तड़प उसे भी सुनायेगी।
"कशिश"भरी नज़रों से कह दो,
         तो  फ़िजा उसे भी  ले आयेगी।


Tuesday 7 November 2017

तू लगा के मेंहदी

तू लगा के मेंहदी हाथों में,
           आ बैठी है  सुर्ख जोडों में।
नज़र उठाके देख जरा,
            सैलाब है मेरी आँखों में।
नाम तेरे जो दिल में है,
            क्या छुप जायेगा मेंहदी में।
जो आँखो में तस्वीर  तेरी,
            क्या उड जायेगा आँधी में।
उल्फ़त की ये चुनरी ,
            जो ओढी है अपने ख्वाबो में।
रंगत इसकी उड नही सकती,
             सावन के बरसातों में।
तेरा 'साहिल' तेरा ही रहेगा,
            हसरत के अरमानो में।
ख़ाक भी हो जाये तो क्या,
            तुर्बत के तहखानो में।

हाइकु सावन श्रृंखला

१ -  फटी बिवाई       थी धरती व्याकुल       सावन आया । २ - नीलाअंबर      टपक रहा जल      मिट्टी महकी । ३ - हर्षित मन       अब महक रहा      भी...