स्वागत करती मेरी नगमा,
कशिश दिया है जिसका नाम,
बंदन करती पाठक जन का
साहिल सुमन है मेरा नाम.
कशिश हमारी स्वपन परी है,
न की नसा करने की जाम,
न ये मद है न मदिरा है,
फिर भी पिने की है जाम .
१ - फटी बिवाई थी धरती व्याकुल सावन आया । २ - नीलाअंबर टपक रहा जल मिट्टी महकी । ३ - हर्षित मन अब महक रहा भी...
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