Tuesday 6 December 2011

फलक के परिन्दे

फ़लक के परिंदे मंजिल को ढूढ़ते  है,
           सागर में उठती लहरे"साहिल"को ढूढती है।
सागर से   है वफाई या साहिल से मोहब्बत, 
           चूम के साहिल को सागर में लौटती है।
इनकी उछलती हुई बुलंदी तो देखिये,
          हवाओ को भी अपने आग़ोश में रखती है।


हाइकु सावन श्रृंखला

१ -  फटी बिवाई       थी धरती व्याकुल       सावन आया । २ - नीलाअंबर      टपक रहा जल      मिट्टी महकी । ३ - हर्षित मन       अब महक रहा      भी...