Tuesday 21 January 2020

सियासत

जिंदगी के सफ़र हम
 रिश्ते निभाते रह गये

हमको मिटाने के लिए
सियासत की चालें चल गये

रुतबा ए बुलंदी देखकर
दुनिया ने सच माना उन्हें
उनकी आतिशबाज़ी में
घर हमारे जल गये

 सुबह आए मुस्कुराते
 वह हमी से कह गये
फूस की थी जल गयी
 नई बनवा कर देंगे हम
देखिए यह बेहयाई
एहसान मुझ पर कर गये

थी मर चुकी इन्सानियत
ज़मीर भी अब मर चुकी
हम किसे अपना कहें
मां थी वो भी मर गयी

आये जनाजे में थे वो
अंगूठे के छाप ले गये
ये ख़ुदा तू है कहां
अब तो जमीं पर देख ले
लाश पर भी देख
वो सियासत चल गये।

हाइकु सावन श्रृंखला

१ -  फटी बिवाई       थी धरती व्याकुल       सावन आया । २ - नीलाअंबर      टपक रहा जल      मिट्टी महकी । ३ - हर्षित मन       अब महक रहा      भी...