वज़्न- २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२
संस्कारों की यहां,बलियां चढ़ाये जा रहे।
बाप-बेटा साथ में, दारु पिलाये जा रहे।।
हम कहां थे ये बुलंदी,ले हमें आयी कहां।
बोल भी सकते नहीं जो, क्यों सताये जा रहे।।
जीव हत्या पाप है जिनको सिखाया 'बुद्ध' ने।
उस धरा पर जीव की बलियां चढ़ाये जा रहे।।
देखते होंगे कभी जो, स्वर्ग से हमको यहां।
रास्ते हमने दिये जो, वो भुलाये जा रहे।।
बुद्ध साहिल आन रखलो, मान अब रखना मिरा।
ज्ञान आकर फिर से दे दो,तम बढा'ये जा रहे।।
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